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"गरमियों की शाम / बालकृष्ण राव" के अवतरणों में अंतर

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आँिधयो ही आँिधयो में
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आँधियों ही आँधियों में
उड गया यह जेठ का जलता हुआ दिन,
+
उड़ गया यह जेठ का जलता हुआ दिन,
मुड गया किस आेर, कब
+
मुड़ गया किस ओर, कब
 
सूरज सुबह का
 
सूरज सुबह का
गदर् की दीवार के पीछे, न जाने।
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गदर की दीवार के पीछे, न जाने ।
  
 
क्या पता कब दिन ढला,
 
क्या पता कब दिन ढला,
कब शाम हो आयी
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कब शाम हो आई
 
नही है अब नही है
 
नही है अब नही है
एक भी पिछडा सिपाही
+
एक भी पिछड़ा सिपाही
आँिधयो की फौज का बाकी
+
आँधियों की फौज का बाकी
  
 
हमारे बीच
 
हमारे बीच
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खड़कता है न हिलता है
 
खड़कता है न हिलता है
 
हवा का नाम भी तो हो  
 
हवा का नाम भी तो हो  
हमें अब आँिधयो के शोर के बदले  
+
हमें अब आँधियों के शोर के बदले  
मिली है हब्स की बेचैन खामेशी
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मिली है हब्स की बेचैन ख़ामोशी
  
 
न जाने क्या हुआ सहसा,
 
न जाने क्या हुआ सहसा,
 
ठिठक कर,
 
ठिठक कर,
साँस रोके रह गयी आँखे गडाये
+
साँस रोके रह गई आँखे गडाए
 
गदर्  
 
गदर्  
दीवार को ही देखती सी
+
दीवार को ही देखती-सी
 
प्रकृति सारी
 
प्रकृति सारी
आैर क्या देखे
+
और क्या देखे
 
दिखेगा क्या
 
दिखेगा क्या
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22:03, 18 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

आँधियों ही आँधियों में
उड़ गया यह जेठ का जलता हुआ दिन,
मुड़ गया किस ओर, कब
सूरज सुबह का
गदर की दीवार के पीछे, न जाने ।

क्या पता कब दिन ढला,
कब शाम हो आई
नही है अब नही है
एक भी पिछड़ा सिपाही
आँधियों की फौज का बाकी

हमारे बीच
अब तो
एक पत्ता भी
खड़कता है न हिलता है
हवा का नाम भी तो हो
हमें अब आँधियों के शोर के बदले
मिली है हब्स की बेचैन ख़ामोशी

न जाने क्या हुआ सहसा,
ठिठक कर,
साँस रोके रह गई आँखे गडाए
गदर्
दीवार को ही देखती-सी
प्रकृति सारी
और क्या देखे
दिखेगा क्या