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"जाना है दूर / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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मन को वश में करो
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रोको मत जाने दो जाना है दूर
फिर चाहे जो करो।
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कर्ता तो और है
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वैसे तो जाने को मन ही होता नहीं,
रहता हर ठौर है  
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लेकिन है कौन यहाँ जो कुछ खोता नहीं
वह सबके साथ है
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तुमसे मिलने का मन तो है मैं क्या करूँ?
दूर नहीं पास है  
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बोलो तुम कैसे कब तक मैं धीरज धरूँ ।
तुम उसका ध्यान धरो।
+
मुझसे मत पूछो मैं कितना मज़बूर ।
फिर चाहे जो करो।
+
  
सोच मत बीते को
+
रोको मत जाने दो जाना है दूर
हार मत जीते को
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गगन कब झुकता है  
+
समय कब रुकता है
+
समय से मत लड़ो।
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फिर चाहे जो करो।
+
  
रात वाला सपना
+
अनगिन चिंताओं के साथ खड़ा हूँ यहाँ
सवेरे कब अपना
+
पूछता नहीं कोई जाऊँगा मैं कहाँ ?
रोज़ यह होता है  
+
तन की क्या बात मन बेहद सैलानी है  
व्यर्थ क्यों रोता है  
+
कर नहीं पाता मन अपनी मनमानी है
डर के मत मरो।
+
दर्द भी सहे हैं हो कर के मशहूर
फिर चाहे जो करो।
+
 
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रोको मत जाने दो जाना है दूर
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अब नहीं कुछ भी पाने को मन करता
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कभी-कभी जीवन भी मुझको अखरता
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साँस का ठिकाना क्या आए न आए
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यह बात कौन किसे कैसे समझाए
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होना है जो भी वह होगा ज़रूर ।
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रोको मत जाने दो जाना है दूर ।
 
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21:07, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

रोको मत जाने दो जाना है दूर

वैसे तो जाने को मन ही होता नहीं,
लेकिन है कौन यहाँ जो कुछ खोता नहीं
तुमसे मिलने का मन तो है मैं क्या करूँ?
बोलो तुम कैसे कब तक मैं धीरज धरूँ ।
मुझसे मत पूछो मैं कितना मज़बूर ।

रोको मत जाने दो जाना है दूर

अनगिन चिंताओं के साथ खड़ा हूँ यहाँ
पूछता नहीं कोई जाऊँगा मैं कहाँ ?
तन की क्या बात मन बेहद सैलानी है
कर नहीं पाता मन अपनी मनमानी है ।
दर्द भी सहे हैं हो कर के मशहूर

रोको मत जाने दो जाना है दूर

अब नहीं कुछ भी पाने को मन करता
कभी-कभी जीवन भी मुझको अखरता
साँस का ठिकाना क्या आए न आए
यह बात कौन किसे कैसे समझाए
होना है जो भी वह होगा ज़रूर ।

रोको मत जाने दो जाना है दूर ।