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"बोलो कहाँ उपजायी थी / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर
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राइन नदी में बतखों ने फिर डुब-डुब डुबकी खाई थी | राइन नदी में बतखों ने फिर डुब-डुब डुबकी खाई थी | ||
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सिंगापुर के सूरज को एक हाथ बढा कर ढाँपा था | सिंगापुर के सूरज को एक हाथ बढा कर ढाँपा था | ||
आल्पस् की अलसाई सुबह फिर थोड़ा सा गरमाई थी। | आल्पस् की अलसाई सुबह फिर थोड़ा सा गरमाई थी। |
14:44, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
जलपाइगुडी के स्टेशन पे तुमने थामा था हाथ मेरा
राइन नदी में बतखों ने फिर डुब-डुब डुबकी खाई थी
सिंगापुर के सूरज को एक हाथ बढा कर ढाँपा था
आल्पस् की अलसाई सुबह फिर थोड़ा सा गरमाई थी।
फिर भावों को तुम तोल रही हो देश-काल के पलड़ों में?
ये कह स्नेह-सिक्त माटी हरियल मलमल मुस्काई थी
जो भाप हवा में जुड़ता है, पा वेग पवन का उड़ता है
वो कहता नहीं कभी बूँदों से 'सखि बोलो कहाँ उपजायी थी?'