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"बसंत आया / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर

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क्या तुम्हारे शहर में भी  
 
क्या तुम्हारे शहर में भी  

14:54, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

क्या तुम्हारे शहर में भी
सुर्ख गुलमोहर की कतारें हैं
क्या अमलतास की रंगोबू
तुम्हें भी दीवाना करती है
क्या भरी दोपहरी में तुम्हारा भी
भटकने को जी करता है
अगर हाँ तो सुनो जो यों जीता है
वो पल-पल मरता है
क्योंकि हर क्षण कहीं कोई पेड़
तो कहीं सर कटता है।