भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ / प्राण शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राण शर्मा }} <poem>माँ की निर्मल काया उससे लिपटी ह...)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=प्राण शर्मा
 
|रचनाकार=प्राण शर्मा
}}
+
}}{{KKCatKavita}}
 +
{{KKAnthologyMaa}}
 
<poem>माँ की निर्मल काया
 
<poem>माँ की निर्मल काया
 
उससे लिपटी है
 
उससे लिपटी है

01:36, 20 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

माँ की निर्मल काया
उससे लिपटी है
सुन्दरता की छाया

युग--युग की क्षमता है
पूजा की जैसी
हर माँ की ममता है

धन धान्य बरसता है
माँ के हंसने से
सारा घर हंसता है

मदमस्ती हरसू है
माँ की लोरी में
मुरली सा जादू है

दुनिया में न्यारी माँ
हंसती- हंसाती है
बच्चों की प्यारी माँ

हर बच्चा पलता है
सच है मेरे यारो
घर माँ से चलता है

मन ही मन रोती हैं
बच्चों के दुःख में
माएं कब सोती हैं

हर बात में कच्चा है
माँ के आगे तो
बूढा भी बच्चा है

माँ कैसी होती है
पारस सा मन है
माँ ऐसी होती है

कुछ कद्र करो भाई
बेटे हो फिर भी
क्यों पीड़ित है माई