भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बैठे हैं दो टीलें / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
:दूर-दूर सड़क के किनारे पर | :दूर-दूर सड़क के किनारे पर | ||
− | सूखे | + | सूखे पत्तो के धुंधुआते से ढेर, |
:एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले | :एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले | ||
:गुमसुम-से पीठ फेर-फेर, | :गुमसुम-से पीठ फेर-फेर, |
20:13, 21 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
तनिक देर और आसपास रहें
चुप रहें, उदास रहें,
जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम।
एक-एक कर पीले पत्तों का
टूटते चले जाना, इतने चुपचाप,
और तुम्हारा पलकें झपकाकर
प्रश्नों को लौटा लेना अपने आप।
दूर-दूर सड़क के किनारे पर
सूखे पत्तो के धुंधुआते से ढेर,
एक तरफ़ बैठे हैं दो टीले
गुमसुम-से पीठ फेर-फेर,
डूब रहा सभी कुछ अन्धेरे में
चुप्पी के घेरे में
पेड़ों पर चिड़ियों ने डाला कुहराम।