भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दृश्य घाटी में / ओम प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रभाकर |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> बीत गए दिन ::फूल खि...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("दृश्य घाटी में / ओम प्रभाकर" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop]) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:27, 21 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
बीत गए दिन
फूल खिलने के।
होती हैं केवल वनस्पतियाँ
हरी-हरी-सी
हर गली
हर मोड़ पर बैठी
मौत अपनी बाँह फैलाकर।
बर्फ़-सा
जमता हुआ हर शख़्स
चुप्पियों में क़ैद हैं साँसें,
समय की नंगी सलीबों पर
गले में अटकी हुईं फाँसें,
लिख रहे हैं
लोग कविताएँ
नींद की ज्यों गोलियाँ खाकर।
बीत गए दिन
अब हवाओं में गन्धकेतु हिलने के
फूल खिलने के।
ढोती है काले पहाड़ दृष्टियाँ
सूर्य झर गए,
दृश्य घाटी में गहरे उतर गए,
बीत गए दिन
उठी बाँहों से बाँहों के मिलने के
फूल खिलने के।