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"निठारी के मासूम भूतों ने पूछा / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: '''निठारी के मासूम भूतों नें पूछा'''<br /> वो चाकलेट<br /> जब नाखून भरे हाथ ...)
 
 
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'''निठारी के मासूम भूतों नें पूछा'''<br />
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वो चाकलेट
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जब नाखून भरे हाथ बन जाती होगी
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तो मासूम छौने सी, नन्ही सी, गुडिया सी
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छोटी सी बिल्ली के बच्चे सी बच्ची
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सहसा सहम कर, रो कर, दुबक कर
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कहती तो होगी 'बुरे वाले अंकल'
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मेरे पास है और भी एसी टॉफी
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मुझे दो ना माफी, जाने भी दो ना..
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मुझे छोड दो, मेरी गुडिया भी लो ना
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तितली भी है, मोर का पंख भी है
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सभी तुमको दूंगी, कभी फिर न लूंगी
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मुझे छोड दो, मुझको एसे न मारो
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ये कपडे नये हैं, इन्हें मत उतारो
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मैं मम्मी से, पापा से सबसे कहूँगी
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मगर छोड दोगे तो चुप ही रहूंगी..
  
वो चाकलेट<br />
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क्या आसमा तब भी पत्थर ही होगा
जब नाखून भरे हाथ बन जाती होगी<br />
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क्यों इस धरा के न टुकडे हुए फिर?
तो मासूम छौने सी, नन्ही सी, गुडिया सी<br />
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पिशाचों नें जब उस गिलहरी को नोचा
छोटी सी बिल्ली के बच्चे सी बच्ची<br />
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तो क्यों शेष का फन न काँपा?
सहसा सहम कर, रो कर, दुबक कर<br />
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न फूटे कहीं ज्वाल के मुख भला क्यों?
कहती तो होगी 'बुरे वाले अंकल'<br />
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गर्दन के, हाँथों के, पैरों के टुकडे
मेरे पास है और भी एसी टॉफी<br />
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नाले में जब वो बहा कर हटा था
मुझे दो ना माफी, जाने भी दो ना..<br />
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तो ए नीली छतरी लगा कर खुदा बन
मुझे छोड दो, मेरी गुडिया भी लो ना<br />
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बैठा है तू, तेरा कुछ भी घटा था
तितली भी है, मोर का पंख भी है<br />
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तू मेरी दृष्टि में सबसे भिखारी
सभी तुमको दूंगी, कभी फिर न लूंगी<br />
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दिया क्या धरा को ये तूनें 'निठारी'?
मुझे छोड दो, मुझको एसे न मारो<br />
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ये कपडे नये हैं, इन्हें मत उतारो<br />
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मैं मम्मी से, पापा से सबसे कहूँगी<br />
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मगर छोड दोगे तो चुप ही रहूंगी..<br />
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क्या आसमा तब भी पत्थर ही होगा<br />
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ये कैसी है दुनियाँ, कहाँ आ गये हम?
क्यों इस धरा के टुकडे हुए फिर?<br />
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कहाँ बढ गये हम, कि क्या पा गये हम?
पिशाचों नें जब उस गिलहरी को नोचा<br />
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आशा की बातें करो कामचोरों
तो क्यों शेष का फन न काँपा?<br />
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'लुक्क्ड', 'उचक्को', 'युवा', तुम पे थू है
न फूटे कहीं ज्वाल के मुख भला क्यों?<br />
+
तुम्ही से तो उठती हर ओर बू है
गर्दन के, हाँथों के, पैरों के टुकडे<br />
+
अरे 'कर्णधारो' मरो,
नाले में जब वो बहा कर हटा था<br />
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चुल्लुओं भर पानीं में डूबो
तो ए नीली छतरी लगा कर खुदा बन<br />
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वेलेंटाईनों के पहलू में दुबको,
बैठा है तू, तेरा कुछ भी घटा था<br />
+
तरक्की करो तुम
तू मेरी दृष्टि में सबसे भिखारी<br />
+
शरम को छुपा दो,
दिया क्या धरा को ये तूनें 'निठारी'?<br />
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बहनों को अमरीकी कपडे दिला दो
 +
बढो शान से, चाँद पर घर बनाओ
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नहीं कोई तुमसे ये पूछेगा कायर
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कि चेहरे में इतना सफेदा लगा कर
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अपना ही चेहरा छुपा क्यों रहे हो
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उठा कर के बाईक 'पतुरिया' घुमाओ
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समाचार देखो तो चैनल बदल दो
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मगर एक दिन पाँव के नीचे धरती
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गर साथ छोडेगी तो क्या करोगे?
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इतिहास पूछेगा तो क्या गडोगे?
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तुम्हारी ही पहचान है ये पिटारी
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उसी देश के हो है जिसमें निठारी...
  
ये कैसी है दुनियाँ, कहाँ आ गये हम?<br />
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भैया थे, पापा थे, नाना थे, चाचा थे
कहाँ बढ गये हम, कि क्या पा गये हम?<br />
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कुछ भी नहीं थे तो क्या कुछ नहीं थे
न आशा की बातें करो कामचोरों<br />
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बदले हुए दौर में हर तरफ हम
'लुक्क्ड', 'उचक्को', 'युवा', तुम पे थू है<br />
+
पिसे हैं तो क्या आपको अजनबी थे?
तुम्ही से तो उठती हर ओर बू है<br />
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नहीं सुन सके क्यों 'बचाओ' 'बचाओ'
अरे 'कर्णधारो' मरो,<br />
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निठारी के मासूम भूतों नें पूछा
चुल्लुओं भर पानीं में डूबो<br />
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अरे बेशरम कर्णधारों बताओ..
वेलेंटाईनों के पहलू में दुबको,<br />
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तरक्की करो तुम<br />
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शरम को छुपा दो,<br />
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बहनों को अमरीकी कपडे दिला दो<br />
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बढो शान से, चाँद पर घर बनाओ<br />
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नहीं कोई तुमसे ये पूछेगा कायर<br />
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कि चेहरे में इतना सफेदा लगा कर<br />
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अपना ही चेहरा छुपा क्यों रहे हो<br />
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उठा कर के बाईक 'पतुरिया' घुमाओ<br />
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समाचार देखो तो चैनल बदल दो<br />
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मगर एक दिन पाँव के नीचे धरती<br />
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अगर साथ छोडेगी तो क्या करोगे?<br />
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इतिहास पूछेगा तो क्या गडोगे?<br />
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तुम्हारी ही पहचान है ये पिटारी<br />
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उसी देश के हो है जिसमें निठारी...<br />
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भैया थे, पापा थे, नाना थे, चाचा थे<br />
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कुछ भी नहीं थे तो क्या कुछ नहीं थे<br />
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बदले हुए दौर में हर तरफ हम<br />
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पिसे हैं तो क्या आपको अजनबी थे?<br />
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नहीं सुन सके क्यों 'बचाओ' 'बचाओ'<br />
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निठारी के मासूम भूतों नें पूछा<br />
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अरे बेशरम कर्णधारों बताओ..<br />
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14:56, 30 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

वो चाकलेट
जब नाखून भरे हाथ बन जाती होगी
तो मासूम छौने सी, नन्ही सी, गुडिया सी
छोटी सी बिल्ली के बच्चे सी बच्ची
सहसा सहम कर, रो कर, दुबक कर
कहती तो होगी 'बुरे वाले अंकल'
मेरे पास है और भी एसी टॉफी
मुझे दो ना माफी, जाने भी दो ना..
मुझे छोड दो, मेरी गुडिया भी लो ना
तितली भी है, मोर का पंख भी है
सभी तुमको दूंगी, कभी फिर न लूंगी
मुझे छोड दो, मुझको एसे न मारो
ये कपडे नये हैं, इन्हें मत उतारो
मैं मम्मी से, पापा से सबसे कहूँगी
मगर छोड दोगे तो चुप ही रहूंगी..

क्या आसमा तब भी पत्थर ही होगा
क्यों इस धरा के न टुकडे हुए फिर?
पिशाचों नें जब उस गिलहरी को नोचा
तो क्यों शेष का फन न काँपा?
न फूटे कहीं ज्वाल के मुख भला क्यों?
गर्दन के, हाँथों के, पैरों के टुकडे
नाले में जब वो बहा कर हटा था
तो ए नीली छतरी लगा कर खुदा बन
बैठा है तू, तेरा कुछ भी घटा था
तू मेरी दृष्टि में सबसे भिखारी
दिया क्या धरा को ये तूनें 'निठारी'?

ये कैसी है दुनियाँ, कहाँ आ गये हम?
कहाँ बढ गये हम, कि क्या पा गये हम?
न आशा की बातें करो कामचोरों
'लुक्क्ड', 'उचक्को', 'युवा', तुम पे थू है
तुम्ही से तो उठती हर ओर बू है
अरे 'कर्णधारो' मरो,
चुल्लुओं भर पानीं में डूबो
वेलेंटाईनों के पहलू में दुबको,
तरक्की करो तुम
शरम को छुपा दो,
बहनों को अमरीकी कपडे दिला दो
बढो शान से, चाँद पर घर बनाओ
नहीं कोई तुमसे ये पूछेगा कायर
कि चेहरे में इतना सफेदा लगा कर
अपना ही चेहरा छुपा क्यों रहे हो
उठा कर के बाईक 'पतुरिया' घुमाओ
समाचार देखो तो चैनल बदल दो
मगर एक दिन पाँव के नीचे धरती
गर साथ छोडेगी तो क्या करोगे?
इतिहास पूछेगा तो क्या गडोगे?
तुम्हारी ही पहचान है ये पिटारी
उसी देश के हो है जिसमें निठारी...

भैया थे, पापा थे, नाना थे, चाचा थे
कुछ भी नहीं थे तो क्या कुछ नहीं थे
बदले हुए दौर में हर तरफ हम
पिसे हैं तो क्या आपको अजनबी थे?
नहीं सुन सके क्यों 'बचाओ' 'बचाओ'
निठारी के मासूम भूतों नें पूछा
अरे बेशरम कर्णधारों बताओ..