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पत्थर फिर बोलेंगे
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ये कैसी आस्था?
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19:10, 9 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

हमारे बीच बहुत कुछ टूट गया है
हमारे भीतर बहुत कुछ छूट गया है
कैसे दर्द ने तराश कर बुत बना दिया हमें
और तन्हाई हमसे लिपट कर
हमारे दिलों की हथेलियाँ मिलाने को तत्पर है
पत्थर फिर बोलेंगे
ये कैसी आस्था?