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"दीप मेरे / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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धुल अचंचल !<br>
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दीप मेरे जल अकम्पित,
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धुल अचंचल !
तड़ित् तम का विकल मन है,<br>
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सिन्धु का उच्छ्वास घन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का<br>
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तड़ित् तम का विकल मन है,
आँसुओं से सिक्त अंचल !<br><br>
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भीति क्या नभ है व्यथा का
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आँसुओं से सिक्त अंचल !
  
स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ,<br>
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स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ,
मीड़ सब भू की शिराएँ,<br>
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मीड़ सब भू की शिराएँ,
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गा रहे आँधी-प्रलय
तेरे लिए ही आज मंगल।<br><br>
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तेरे लिए ही आज मंगल।
  
मोह क्या निशि के वरों का,<br>
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मोह क्या निशि के वरों का,
शलभ के झुलसे परों का,<br>
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शलभ के झुलसे परों का,
साथ अक्षय ज्वाल का<br>
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साथ अक्षय ज्वाल का
तू ले चला अनमोल सम्बल !<br><br>
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तू ले चला अनमोल सम्बल !
  
पथ न भूले, एक पग भी,<br>
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घर न खोये, लघु विहग भी,<br>
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घर न खोये, लघु विहग भी,
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आँक सब की छाँह उज्ज्वल !
  
हो लिये सब साथ अपने,<br>
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हो लिये सब साथ अपने,
मृदुल आहटहीन सपने,<br>
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मृदुल आहटहीन सपने,
तू इन्हें पाथेय बिन, चिर<br>
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तू इन्हें पाथेय बिन, चिर
प्यास के मरु में न खो, चल !<br><br>
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प्यास के मरु में न खो, चल !
  
धूम में अब बोलना क्या,<br>
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धूम में अब बोलना क्या,
क्षार में अब तोलना क्या !<br>
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क्षार में अब तोलना क्या !
प्रात हँस-रोकर गिनेगा,<br>
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प्रात हँस-रोकर गिनेगा,
स्वर्ण कितने हो चुके पल !<br>
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स्वर्ण कितने हो चुके पल !
दीप रे तू गल अकम्पित,<br>
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दीप रे तू गल अकम्पित,
 
चल अचंचल !
 
चल अचंचल !
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18:20, 13 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

दीप मेरे जल अकम्पित,
धुल अचंचल !
सिन्धु का उच्छ्वास घन है,
तड़ित् तम का विकल मन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का
आँसुओं से सिक्त अंचल !

स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ,
मीड़ सब भू की शिराएँ,
गा रहे आँधी-प्रलय
तेरे लिए ही आज मंगल।

मोह क्या निशि के वरों का,
शलभ के झुलसे परों का,
साथ अक्षय ज्वाल का
तू ले चला अनमोल सम्बल !

पथ न भूले, एक पग भी,
घर न खोये, लघु विहग भी,
स्निग्ध लौ की तूलिका से
आँक सब की छाँह उज्ज्वल !

हो लिये सब साथ अपने,
मृदुल आहटहीन सपने,
तू इन्हें पाथेय बिन, चिर
प्यास के मरु में न खो, चल !

धूम में अब बोलना क्या,
क्षार में अब तोलना क्या !
प्रात हँस-रोकर गिनेगा,
स्वर्ण कितने हो चुके पल !
दीप रे तू गल अकम्पित,
चल अचंचल !