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− | दीप मेरे जल अकम्पित, | + | <poem> |
− | धुल अचंचल ! | + | दीप मेरे जल अकम्पित, |
− | सिन्धु का उच्छ्वास घन है, | + | धुल अचंचल ! |
− | तड़ित् तम का विकल मन है, | + | सिन्धु का उच्छ्वास घन है, |
− | भीति क्या नभ है व्यथा का | + | तड़ित् तम का विकल मन है, |
− | आँसुओं से सिक्त अंचल ! | + | भीति क्या नभ है व्यथा का |
+ | आँसुओं से सिक्त अंचल ! | ||
− | स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ, | + | स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ, |
− | मीड़ सब भू की शिराएँ, | + | मीड़ सब भू की शिराएँ, |
− | गा रहे आँधी-प्रलय | + | गा रहे आँधी-प्रलय |
− | तेरे लिए ही आज मंगल। | + | तेरे लिए ही आज मंगल। |
− | मोह क्या निशि के वरों का, | + | मोह क्या निशि के वरों का, |
− | शलभ के झुलसे परों का, | + | शलभ के झुलसे परों का, |
− | साथ अक्षय ज्वाल का | + | साथ अक्षय ज्वाल का |
− | तू ले चला अनमोल सम्बल ! | + | तू ले चला अनमोल सम्बल ! |
− | पथ न भूले, एक पग भी, | + | पथ न भूले, एक पग भी, |
− | घर न खोये, लघु विहग भी, | + | घर न खोये, लघु विहग भी, |
− | स्निग्ध लौ की तूलिका से | + | स्निग्ध लौ की तूलिका से |
− | आँक सब की छाँह उज्ज्वल ! | + | आँक सब की छाँह उज्ज्वल ! |
− | हो लिये सब साथ अपने, | + | हो लिये सब साथ अपने, |
− | मृदुल आहटहीन सपने, | + | मृदुल आहटहीन सपने, |
− | तू इन्हें पाथेय बिन, चिर | + | तू इन्हें पाथेय बिन, चिर |
− | प्यास के मरु में न खो, चल ! | + | प्यास के मरु में न खो, चल ! |
− | धूम में अब बोलना क्या, | + | धूम में अब बोलना क्या, |
− | क्षार में अब तोलना क्या ! | + | क्षार में अब तोलना क्या ! |
− | प्रात हँस-रोकर गिनेगा, | + | प्रात हँस-रोकर गिनेगा, |
− | स्वर्ण कितने हो चुके पल ! | + | स्वर्ण कितने हो चुके पल ! |
− | दीप रे तू गल अकम्पित, | + | दीप रे तू गल अकम्पित, |
चल अचंचल ! | चल अचंचल ! | ||
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18:20, 13 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
दीप मेरे जल अकम्पित,
धुल अचंचल !
सिन्धु का उच्छ्वास घन है,
तड़ित् तम का विकल मन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का
आँसुओं से सिक्त अंचल !
स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ,
मीड़ सब भू की शिराएँ,
गा रहे आँधी-प्रलय
तेरे लिए ही आज मंगल।
मोह क्या निशि के वरों का,
शलभ के झुलसे परों का,
साथ अक्षय ज्वाल का
तू ले चला अनमोल सम्बल !
पथ न भूले, एक पग भी,
घर न खोये, लघु विहग भी,
स्निग्ध लौ की तूलिका से
आँक सब की छाँह उज्ज्वल !
हो लिये सब साथ अपने,
मृदुल आहटहीन सपने,
तू इन्हें पाथेय बिन, चिर
प्यास के मरु में न खो, चल !
धूम में अब बोलना क्या,
क्षार में अब तोलना क्या !
प्रात हँस-रोकर गिनेगा,
स्वर्ण कितने हो चुके पल !
दीप रे तू गल अकम्पित,
चल अचंचल !