{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=नीलाम्बरा / महादेवी वर्मा
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<poem>लाये कौन सँदेश नये घन ! <br>अम्बर गर्वित <br>हो आया नत, <br>चिर निस्पन्द हृदय में उसके <br>उमड़े री पलकों के सावन ! <br><br>
लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
चौंकी निद्रित, <br>रजनी अलसित <br>श्यामल पुलकित कम्पित कर में <br>दमक उठे विद्युत् के कंकण ! <br>लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
दिशि का चंचल, <br>परिमल- अंचल, <br>छिन्न हार से बिखर पड़े सखि ! <br>जुगनू के लघु हीरक के कण ! <br>लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
जड़ जग स्पन्दित, <br>निश्चल कम्पित, <br>फूट पड़े अवनी के संचित <br>सपने मृदुतम अंकुर बन बन ! <br>लाये कौन सँदेश नये घन !<br><br> रोया चातक, <br>सकुचाया पिक, <br>मत्त मयूरों ने सूने में <br>झड़ियों का दुहराया नर्तन ! <br>लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
रोया चातक,सकुचाया पिक,मत्त मयूरों ने सूने मेंझड़ियों का दुहराया नर्तन !लाये कौन सँदेश नये घन ! सुख-दुख से भर, <br>आया लघु उर, <br>मोती से उजले जलकण से <br>छाये मेरे विस्मित लोचन ! <br>लाये कौन सँदेश नये घन ! <br/poem>