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वायु बहती शीत-निष्ठुर / हरिवंशराय बच्चन
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18:30, 3 अक्टूबर 2009
ताप जीवन श्वास वाली,
मृत्यु हिम उच्छवास वाली।
क्या जला, जलकर बुझा,
ठंढ़ा
ठंढा
हुआ फिर प्रकृति का उर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!
थी न सब दिन त्रासदाता
वायु ऐसी--यह बताता
एक जोड़ा पेंडुकी का
ड़ाल
डाल
पर बैठा सिकुड़-जुड़!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!
</poem>
अनिल जनविजय
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