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"खुला आसमान / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
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निकली है धूप, खुश हुआ जहान!
  
दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,<br>
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:दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,<br>
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खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़,<br>
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लड़कियाँ घरों को कर भासमान!<br><br>
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कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले
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नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,
बातें करती हैं वे सब खड़ी,<br>
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:बातें करती हैं वे सब खड़ी,
चलते हैं नयनों के बाण!<br>
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:चलते हैं नयनों के सधे बाण!
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01:57, 11 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

(गीत)
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!

दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,
खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़--
लड़कियाँ घरों को कर भासमान!

लोग गाँव-गाँव को चले,
कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले
जाँघिया-लँगोटा ले, सँभले,
तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!

पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,
बातें करती हैं वे सब खड़ी,
चलते हैं नयनों के सधे बाण!