भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साँवरो रूप / देव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: देव मैं सीस बसायो सनेह के भाल मृगम्मद बिन्दु के भाख्यो।<br /> कंचुकी ...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | देव मैं सीस बसायो सनेह के भाल मृगम्मद बिन्दु के भाख्यो। | + | {{KKGlobal}} |
− | कंचुकी में चुपरयो करि चोवा लगाय लयो उर सो अभिलाख्यो। | + | {{KKRachna |
− | लै मख्तूल गुहै गहने रस मूरतिवन्त सिंगार कै चाख्यो। | + | |रचनाकार=देव |
− | साँवरे स्याम को साँवरो रूप में नैननि में कजरा करि राख्यो॥< | + | }} |
+ | <poem> | ||
+ | देव मैं सीस बसायो सनेह के भाल मृगम्मद बिन्दु के भाख्यो। | ||
+ | कंचुकी में चुपरयो करि चोवा लगाय लयो उर सो अभिलाख्यो। | ||
+ | लै मख्तूल गुहै गहने रस मूरतिवन्त सिंगार कै चाख्यो। | ||
+ | साँवरे स्याम को साँवरो रूप में नैननि में कजरा करि राख्यो॥ | ||
+ | </poem> |
17:54, 9 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
देव मैं सीस बसायो सनेह के भाल मृगम्मद बिन्दु के भाख्यो।
कंचुकी में चुपरयो करि चोवा लगाय लयो उर सो अभिलाख्यो।
लै मख्तूल गुहै गहने रस मूरतिवन्त सिंगार कै चाख्यो।
साँवरे स्याम को साँवरो रूप में नैननि में कजरा करि राख्यो॥