भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हँसी की चोट / देव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन सी सब नीर गयो ढरि।<br /> तेज गयो गुन ...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन सी सब नीर गयो ढरि।<br />
+
{{KKGlobal}}
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि॥<br />
+
{{KKRachna
'देव' जियै मिलिबेहि की आस कि, आसहू पास अकास रह्यो भरि।<br />
+
|रचनाकार=देव
जा दिन तै मुख फेरि हरै हँसि हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि॥<br />
+
}}
 +
<poem>
 +
साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन सी सब नीर गयो ढरि।
 +
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि॥
 +
'देव' जियै मिलिबेहि की आस कि, आसहू पास अकास रह्यो भरि।
 +
जा दिन तै मुख फेरि हरै हँसि हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि॥
 +
</poem>

17:20, 9 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन सी सब नीर गयो ढरि।
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि॥
'देव' जियै मिलिबेहि की आस कि, आसहू पास अकास रह्यो भरि।
जा दिन तै मुख फेरि हरै हँसि हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि॥