"अकारण प्यार से / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर
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− | एक रात किसी ने | + | मन के सादे कागज पर |
− | ईशारों से लिख दिया अ.... | + | एक रात किसी ने |
− | और अकारण | + | ईशारों से लिख दिया अ.... |
− | शुरू हो गया वह | + | और अकारण |
− | और एक अनमनापन बना रहने लगा | + | शुरू हो गया वह |
− | फिर उस अनमनेपन को दूर करने को | + | और एक अनमनापन बना रहने लगा |
− | एक दिन आई खुशी | + | फिर उस अनमनेपन को दूर करने को |
− | और आजू-बाजू कई कारण | + | एक दिन आई खुशी |
− | खडें कर दिए | + | और आजू-बाजू कई कारण |
− | कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए | + | खडें कर दिए |
− | और वह लगा डग भरने , चलने और | + | कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए |
− | और अखीर में उड़ने | + | और वह लगा डग भरने , चलने और |
− | अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी | + | और अखीर में उड़ने |
− | जिधर का ईशारा करता अ... | + | अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी |
− | और पाता कि यह दुनिया तो | + | जिधर का ईशारा करता अ... |
− | इसी अकारण प्यार से चल रही है | + | और पाता कि यह दुनिया तो |
− | और उसे पहली बार प्यारी लगी यह | + | इसी अकारण प्यार से चल रही है |
− | कि उसे पता ही नही था इसकी बाबत | + | और उसे पहली बार प्यारी लगी यह |
− | जबकि तमाम उम्र वह | + | कि उसे पता ही नही था इसकी बाबत |
− | इसी के बारे में कलम घिसता रहा था | + | जबकि तमाम उम्र वह |
+ | इसी के बारे में कलम घिसता रहा था | ||
− | यह सोच-सोच कर उसे | + | यह सोच-सोच कर उसे |
− | खुद पर हंसी आई | + | खुद पर हंसी आई |
− | और अपनी बोली में उसने | + | और अपनी बोली में उसने |
− | खुद को ही कहा - भक... बुद्धू... | + | खुद को ही कहा - भक... बुद्धू... |
− | भक... | + | भक... |
− | अ ने दुहराया उसे | + | अ ने दुहराया उसे |
− | और बिहंसता जाकर झूल गया | + | और बिहंसता जाकर झूल गया |
− | उसके कंधों से | + | उसके कंधों से |
− | अब दोनों ने मिलकर कहा - भक... | + | अब दोनों ने मिलकर कहा - भक... |
− | और ठठाकर हंस पड़े | + | और ठठाकर हंस पड़े |
− | भक... | + | भक... |
दूर दो सितारे चमक उठे... | दूर दो सितारे चमक उठे... | ||
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14:42, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
स्वप्न में
मन के सादे कागज पर
एक रात किसी ने
ईशारों से लिख दिया अ....
और अकारण
शुरू हो गया वह
और एक अनमनापन बना रहने लगा
फिर उस अनमनेपन को दूर करने को
एक दिन आई खुशी
और आजू-बाजू कई कारण
खडें कर दिए
कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए
और वह लगा डग भरने , चलने और
और अखीर में उड़ने
अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी
जिधर का ईशारा करता अ...
और पाता कि यह दुनिया तो
इसी अकारण प्यार से चल रही है
और उसे पहली बार प्यारी लगी यह
कि उसे पता ही नही था इसकी बाबत
जबकि तमाम उम्र वह
इसी के बारे में कलम घिसता रहा था
यह सोच-सोच कर उसे
खुद पर हंसी आई
और अपनी बोली में उसने
खुद को ही कहा - भक... बुद्धू...
भक...
अ ने दुहराया उसे
और बिहंसता जाकर झूल गया
उसके कंधों से
अब दोनों ने मिलकर कहा - भक...
और ठठाकर हंस पड़े
भक...
दूर दो सितारे चमक उठे...