भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वन-वन, उपवन / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत
+
|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत; पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
वन- वन उपवन  
+
वन-वन, उपवन--
छाया उन्मन- उन्मन गुंजन  
+
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव वय के अलियों का गुंजन !   
+
नव-वय के अलियों का गुंजन!   
  
रुपहले, सुनहले, आम्र, मौर,  
+
रुपहले, सुनहले आम्र-बौर,  
 
नीले, पीले औ ताम्र भौंर,  
 
नीले, पीले औ ताम्र भौंर,  
रे गंध-गंध हो ठौर-ठौर  
+
रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर  
उड़ पाँति-पाँति में चिर उन्मन  
+
:उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन  
करते मधु के वन में गुंजन !   
+
:करते मधु के वन में गुंजन!   
  
 
वन के विटपों की डाल-डाल  
 
वन के विटपों की डाल-डाल  
 
कोमल कलियों से लाल-लाल,  
 
कोमल कलियों से लाल-लाल,  
फैली नव मधु की रूप ज्वाल,  
+
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल,  
जल-जल प्राणों के अलि उन्मन  
+
:जल-जल प्राणों के अलि उन्मन  
करते स्पन्दन, भरते-गुंजन !   
+
:करते स्पन्दन, करते-गुंजन!   
  
 
अब फैला फूलों में विकास,  
 
अब फैला फूलों में विकास,  
 
मुकुलों के उर में मदिर वास,  
 
मुकुलों के उर में मदिर वास,  
 
अस्थिर सौरभ से मलय-श्वास,  
 
अस्थिर सौरभ से मलय-श्वास,  
जीवन-मधु-संचय को उन्मन  
+
:जीवन-मधु-संचय को उन्मन  
करते प्राणों के अलि गुंजन !   
+
:करते प्राणों के अलि गुंजन!   
  
(जनवरी, 1932)
+
रचनाकाल: जनवरी’ 1932
 
</poem>
 
</poem>

10:46, 10 जून 2010 के समय का अवतरण

वन-वन, उपवन--
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव-वय के अलियों का गुंजन!

रुपहले, सुनहले आम्र-बौर,
नीले, पीले औ ताम्र भौंर,
रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर
उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन
करते मधु के वन में गुंजन!

वन के विटपों की डाल-डाल
कोमल कलियों से लाल-लाल,
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल,
जल-जल प्राणों के अलि उन्मन
करते स्पन्दन, करते-गुंजन!

अब फैला फूलों में विकास,
मुकुलों के उर में मदिर वास,
अस्थिर सौरभ से मलय-श्वास,
जीवन-मधु-संचय को उन्मन
करते प्राणों के अलि गुंजन!

रचनाकाल: जनवरी’ 1932