भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वे चुप हैं / अशोक कुमार पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार पाण्डेय }} <poem>हत्यारे की शाल की गुनगु…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अशोक कुमार पाण्डेय
 
|रचनाकार=अशोक कुमार पाण्डेय
}}  
+
}}
<poem>हत्यारे की शाल की
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
हत्यारे की शाल की
 
गुनगुनी ग़र्मी के भीतर
 
गुनगुनी ग़र्मी के भीतर
 
वे चुप हैं
 
वे चुप हैं
पंक्ति 30: पंक्ति 32:
 
तरक्कीराम के लिए तो मेहर है अल्लाह की
 
तरक्कीराम के लिए तो मेहर है अल्लाह की
 
उसके करम से अभिभूत वे चुप हैं
 
उसके करम से अभिभूत वे चुप हैं
 
 
</poem>
 
</poem>

15:27, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

हत्यारे की शाल की
गुनगुनी ग़र्मी के भीतर
वे चुप हैं

वे चुप हैं
गिनते हुए पुरस्कारों के मनके
कभी-कभी आदतन बुदबुदाते हैं
एक शहीद कवि की पंक्तियाँ
उस कविता से सोखते हुए आग वे चुप हैं

वे चुप हैं
मन ही मन लगाते आवाज़ की कीमत
संस्थाओं की गुदगुदी गद्दियों में करते केलि
सारी आवाज़ों से बाखबर
वे चुप हैं

वे चुप हैं
कि उन्हें मालूम हैं आवाज़ के ख़तरे
व चुप हैं कि उन्हें मालूम हैं चुप्पी के हासिल
चुप हैं कि धूप में नहीं पके उनके बाल
अनुभवों की बर्फ़ में ढालते विचारों की शराब
वे चुप हैं

चुप्पी ख़तरा हो तो हो
ज़िन्दा आदमी के लिए
तरक्कीराम के लिए तो मेहर है अल्लाह की
उसके करम से अभिभूत वे चुप हैं