भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्मृति / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा | |संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
विस्मृति तिमिर में दीप हो | विस्मृति तिमिर में दीप हो |
22:32, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
विस्मृति तिमिर में दीप हो
भवितव्य का उपहार हो;
बीते हुए का स्वप्न हो
मानव हृदय का सार हो।
तुम सान्त्वना हो दैव की
तुम भाग्य का वरदान हो;
टूटी हुई झंकार हो
गत काल की मुस्कान हो।
उस लोक का संदेश हो
इस लोक का इतिहास हो;
भूले हुए का चित्र हो
सोई व्यथा का हास हो।
अस्थिर चपल संसार में
तुम हो प्रर्दशक संगिनी,
निस्सार मानस कोप में
हो मंजु हीरक की कनी।
दुर्दैव ने उर पर हमारे
चित्र जो अंकित किये,
देकर सजीला रंग तुमने
सर्वदा रंजित किये;
तुम हो सुधा धारा सदा
सूखे हुए अनुराग को;
तुम जन्म देती हो सजनि!
आसक्ति को वैराग्य को।
तेरे बिना संसार में
मानव हॄदय श्मशान है;
तेरे बिना हे संगिनी!
अनुराग का क्या मान है?