भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देश के नेताओं से / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=धार के इधर उधर / हरिवंशर…)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 
|संग्रह=धार के इधर उधर / हरिवंशराय बच्चन
 
|संग्रह=धार के इधर उधर / हरिवंशराय बच्चन
}}
+
}}{{KKAnthologyDeshBkthi}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>

01:25, 21 मई 2011 के समय का अवतरण

विनम्र हो ब्रिटेन-गर्व जो हरे,
विरक्त हो विमुक्त देश जो करे,
समाज किसलिए न देख हो दुखी,
कि उस महान को खरीद बंक ले।

स्वदेश बाग-डोर हाथ में लिए,
विशाल जन-समूह साथ में लिए,
कभी नहीं उचित कि हो अधोमुखी
प्रवेश तुम करो प्रमाद--पंक में।

करो न व्यर्थ दाप, होशियार हो,
फला कभी न पाप, होशियार हो,
प्रसिद्ध है प्रकोप जन-जनार्दनी,
मिले तुम्हें न शाप होशियार हो,
तुम्हें कहीं न राजमद कलंक दे।