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"अलाव / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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पर चुकती नहीं मेरे भीतर की भटकन !
 
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'''नयी दिल्ली, दिसम्बर, 1980'''
 
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16:32, 10 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

माघ : कोहरे में अंगार की सुलगन
अलाव के ताव के घेरे के पार
सियार की आँखों में जलन
सन्नाटे में जब-तब चिनगी की चटकन
सब मुझे याद है : मैं थकता हूँ
पर चुकती नहीं मेरे भीतर की भटकन !

नयी दिल्ली, दिसम्बर, 1980