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"सुजीवन / सियाराम शरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर
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आवें अचल फोड़कर थल में; | आवें अचल फोड़कर थल में; | ||
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पर तप में ऊपर चढ जावें, | पर तप में ऊपर चढ जावें, | ||
गिरकर भी क्षिति को सरसावें | गिरकर भी क्षिति को सरसावें | ||
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11:25, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हे जीवन स्वामी तुम हमको
जल सा उज्ज्वल जीवन दो!
हमें सदा जल के समान ही
स्वच्छ और निर्मल मन दो!
रहें सदा हम क्यों न अतल में,
किंतु दूसरों के हित पल में
आवें अचल फोड़कर थल में;
ऐसा शक्तिपूर्ण तन दो!
स्थान न क्यों नीचे ही पावें,
पर तप में ऊपर चढ जावें,
गिरकर भी क्षिति को सरसावें
ऐसा सत्साहस धन दो!