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− | एक दिन रूक जाएगी जो लय | + | <poem> |
− | उसे अब और क्या सुनना? | + | एक दिन रूक जाएगी जो लय |
− | व्यतिक्रम ही नियम हो तो | + | उसे अब और क्या सुनना? |
− | उसी की आग में से | + | व्यतिक्रम ही नियम हो तो |
− | बार-बार, बार-बार | + | उसी की आग में से |
− | मुझे अपने फूल हैं चुनना। | + | बार-बार, बार-बार |
− | चिता मेरी है: दुख मेरा नहीं। | + | मुझे अपने फूल हैं चुनना। |
− | तुम्हारा भी बने क्यों, जिसे मैंने किया है प्यार? | + | चिता मेरी है: दुख मेरा नहीं। |
− | तुम कभी रोना नहीं, मत | + | तुम्हारा भी बने क्यों, जिसे मैंने किया है प्यार? |
− | कभी सिर धुनना। | + | तुम कभी रोना नहीं, मत |
− | टूटता है जो उसी भी, हाँ, कहो संसार | + | कभी सिर धुनना। |
− | पर जो टूट को भी टेक दे, ले धार, सहार, | + | टूटता है जो उसी भी, हाँ, कहो संसार |
− | उस अनन्त, उदार को | + | पर जो टूट को भी टेक दे, ले धार, सहार, |
− | कैसे सकोगे भूल— | + | उस अनन्त, उदार को |
− | उसे, जिस को वह चिता की आग | + | कैसे सकोगे भूल— |
− | है, होगी, हुताशन— | + | उसे, जिस को वह चिता की आग |
− | जिसे कुछ भी, कभी, कुछ से नहीं सकता मार— | + | है, होगी, हुताशन— |
− | वही लो, वही रखो साज-सँवार— | + | जिसे कुछ भी, कभी, कुछ से नहीं सकता मार— |
− | वह कभी बुझने न वाला | + | वही लो, वही रखो साज-सँवार— |
+ | वह कभी बुझने न वाला | ||
प्यार का अंगार! | प्यार का अंगार! | ||
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<span style="font-size:14px">फाल्गुन शुक्ला सप्तमी, सं० २०२२]</span> | <span style="font-size:14px">फाल्गुन शुक्ला सप्तमी, सं० २०२२]</span> | ||
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22:03, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
एक दिन रूक जाएगी जो लय
उसे अब और क्या सुनना?
व्यतिक्रम ही नियम हो तो
उसी की आग में से
बार-बार, बार-बार
मुझे अपने फूल हैं चुनना।
चिता मेरी है: दुख मेरा नहीं।
तुम्हारा भी बने क्यों, जिसे मैंने किया है प्यार?
तुम कभी रोना नहीं, मत
कभी सिर धुनना।
टूटता है जो उसी भी, हाँ, कहो संसार
पर जो टूट को भी टेक दे, ले धार, सहार,
उस अनन्त, उदार को
कैसे सकोगे भूल—
उसे, जिस को वह चिता की आग
है, होगी, हुताशन—
जिसे कुछ भी, कभी, कुछ से नहीं सकता मार—
वही लो, वही रखो साज-सँवार—
वह कभी बुझने न वाला
प्यार का अंगार!
फाल्गुन शुक्ला सप्तमी, सं० २०२२]