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"वो रात / अभिज्ञात" के अवतरणों में अंतर
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बातों बातों में जो ढली होगी | बातों बातों में जो ढली होगी |
23:03, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बातों बातों में जो ढली होगी
वो रात कितनी मनचली होगी
तेरे सिरहाने याद भी मेरी
रात भर शम्मां-सी जली होगी
जिससे निकला है आफ़ताब मेरा
वो तेरा घर तेरी गली होगी
दोस्तों को पता चला होगा
दुश्मनों-सी ही खलबली होगी
सबने तारीफ़ तेरी की होगी
मैं चुप रहा तो ये कमी होगी
तेरी आँखो में झाँकने के बाद
लड़खड़ाऊँ तो मयक़शी होगी
है तेरा ज़िक्र तो यकीं है मुझे
मेरे बारें में बात भी होगी