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"नयनों की रेशम डोरी से / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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अपनी करूणा की रोरी से। <br><br>
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09:54, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

नयनों की रेशम डोरी से
अपनी कोमल बरजोरी से।

रहने दो इसको निर्जन में
बांधो मत मधुमय बन्धन में,
एकाकी ही है भला यहाँ,
निठुराई की झकझोरी से।

अन्तरतम तक तुम भेद रहे,
प्राणों के कण कण छेद रहे।
मत अपने मन में कसो मुझे
इस ममता की गँठजोरी से।

निष्ठुर न बनो मेरे चंचल
रहने दो कोरा ही अंचल,
मत अरूण करो हे तरूण किरण।
अपनी करूणा की रोरी से।