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"मत पूछना / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का, | सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का, | ||
लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होंगी | लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होंगी | ||
− | तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम | + | तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम का । |
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20:39, 17 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
मत पूछना हर बार मिलने पर कि "कैसे हैं"
सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का,
लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होंगी
तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम का ।