भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"न ग़ुंचे गुल के खुलते हैं, न नरगिस की खिली कलियाँ / सौदा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} <poem> न ग़ुंचे गुल के खुलते हैं, न नरगिस की खि…) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
न ग़ुंचे गुल के खुलते हैं, न नरगिस की खिली कलियाँ | न ग़ुंचे गुल के खुलते हैं, न नरगिस की खिली कलियाँ | ||
चमन में लेके ख़मियाज़ा किसी ने अँखड़ियाँ मलियाँ | चमन में लेके ख़मियाज़ा किसी ने अँखड़ियाँ मलियाँ | ||
+ | |||
कहीं मेहताब ने देखा है उस ख़ुरशीदे-ताबाँ को | कहीं मेहताब ने देखा है उस ख़ुरशीदे-ताबाँ को | ||
फिरे है ढूँढता हर शब जहानाबाद की गलियाँ | फिरे है ढूँढता हर शब जहानाबाद की गलियाँ | ||
+ | |||
तबस्सुम यूँ नुमाया है, मिस्सी-आलूद होंठों पर | तबस्सुम यूँ नुमाया है, मिस्सी-आलूद होंठों पर | ||
न हो अब्रे-सियह में इस तरह बिजली की अचपलियाँ | न हो अब्रे-सियह में इस तरह बिजली की अचपलियाँ | ||
+ | |||
दिवाना हो गया ’सौदा’ तू आख़िर रेख़्ता पढ़-पढ़ | दिवाना हो गया ’सौदा’ तू आख़िर रेख़्ता पढ़-पढ़ | ||
न मैं कहता था ज़ालिम कि ये बातें नहीं भलियाँ | न मैं कहता था ज़ालिम कि ये बातें नहीं भलियाँ | ||
</poem> | </poem> |
21:23, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
न ग़ुंचे गुल के खुलते हैं, न नरगिस की खिली कलियाँ
चमन में लेके ख़मियाज़ा किसी ने अँखड़ियाँ मलियाँ
कहीं मेहताब ने देखा है उस ख़ुरशीदे-ताबाँ को
फिरे है ढूँढता हर शब जहानाबाद की गलियाँ
तबस्सुम यूँ नुमाया है, मिस्सी-आलूद होंठों पर
न हो अब्रे-सियह में इस तरह बिजली की अचपलियाँ
दिवाना हो गया ’सौदा’ तू आख़िर रेख़्ता पढ़-पढ़
न मैं कहता था ज़ालिम कि ये बातें नहीं भलियाँ