भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"और मैं / जया जादवानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जया जादवानी |संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्व…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("और मैं / जया जादवानी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
और मैं ऋतु पूरी गुज़ार आई | और मैं ऋतु पूरी गुज़ार आई | ||
शाखें हुईं नंगी पाले मारे मौसम में | शाखें हुईं नंगी पाले मारे मौसम में | ||
− | + | कर्ज़ था आत्मा पर, देह उतार आई। | |
</poem> | </poem> |
03:00, 19 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुमने कहा था तुम आओगे
और मैं ऋतु पूरी गुज़ार आई
शाखें हुईं नंगी पाले मारे मौसम में
कर्ज़ था आत्मा पर, देह उतार आई।