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"मैं फँस गया हूँ / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

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मैं फ़ँस गया हूँ  अबके ऐसे बबाल में
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फँसती है जैसे मछली, कछुए के जाल में।
 
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उस आदमी से पूछो रोटी के फ़लसफ़े को
 
उस आदमी से पूछो रोटी के फ़लसफ़े को
जो ढूँढता है रोटी पेड़ो की छाल में।
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रूहों को कत्ल करके क़ातिल फ़रार है
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ज़िन्दा है गाँव तब से मुर्दों के हाल में।
 
ज़िन्दा है गाँव तब से मुर्दों के हाल में।
  
जो गन्दगी से उपर जन-मन को खुश करे
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जो गन्दगी से उपर जन-मन को ख़ुश  करें
 
ऐसे कमल ही रोपिए संसद के ताल में।
 
ऐसे कमल ही रोपिए संसद के ताल में।
  

11:45, 3 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

मैं फँस गया हूँ अबके ऐसे बबाल में
फँसती है जैसे मछली, कछुए के जाल में।

उस आदमी से पूछो रोटी के फ़लसफ़े को
जो ढूँढता है रोटी पेड़ों की छाल में।

रूहों को क़त्ल करके क़ातिल फ़रार है
ज़िन्दा है गाँव तब से मुर्दों के हाल में।

जो गन्दगी से उपर जन-मन को ख़ुश करें
ऐसे कमल ही रोपिए संसद के ताल में।

गर मुफ़लिसी का मोर्चा तुमको है जीतना
कुछ ओर तेज़ी लाइए ख़ूँ के उबाल में।