सदियों का वह विश्वास, कभी मत क्षमा करो,
जो हृदय-कुंज में बैठ तुम्हीं को छलता है,
वह एक कसौटी, लीक पुरानी है जिस पर,
मारो उसको जो डंक मारते चलता है।
जब डंकों के बदले न डंक हम दे सकते,
इनके अपने विश्वास मूक हो जाते हैं,
काटता, असल में, प्रेत इन्हें अपने मन का,
मेरी निर्विषता से नाहक घबराते हैं।
रचनाकाल १९५० ई०
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