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{{KKCatKavita}}
[[Category:पंजाबी भाषा]]{{KKCatKavita}}<poem> बरसों की आरी हंस हँस रही थीघटनाओं के दांत दाँत नुकीले थे
अकस्मात एक पाया टूट गया
आसमान की चौकी पर से
शीशे का सूरज फिसल गया
आंखों आँखों में ककड़ कंकड़ छितरा गयेगएऔर नजर जख्मी नज़र जख़्मी हो गयीगईकुछ दिखायी दिखाई नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है
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