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"मेरी आँखों का नूर / आभा" के अवतरणों में अंतर
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20:47, 29 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
लोग कहते हैं
कि बेटे को
ज़िन्दगी दे दी मैंने
पर उसके कई संगी नहीं रहे
जिनकी बड़ी-बड़ी आँखें
आज भी घूरती कहती हैं-
आंटी, मैं भी कहानी लिखूंगी
अपनी
उसकी आवाज़ आज भी
गूँजती है कानों में
बच्ची!
कैसी आवाज़ लगाई तूने
जो आज भी गूँज रही है फिजाँ में
ओह!
व्हील-चेयर पर
दर्द से तड़पती आँखें वे
वह दर्द
आज मेरी आँखों का नूर बन
चमक रहा है