भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"औरत-3 / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | '''औरत(तीन)''' | + | '''औरत (तीन)''' |
मुस्कुराती है | मुस्कुराती है |
22:54, 29 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
औरत (तीन)
मुस्कुराती है
कि मुस्कुराते हुए
वह सुंदर लगती है
शर्माती है
कि शर्माते हुए
वह अच्छी दिखती है
यह करने से
ऐसी लगती है
वह करने से
वैसी दिखती है
लगते/दिखते
बस लगना / दिखना ही
भाग्य मानकर
इस ख़ुशबू में नहाई
उस रंग में रंगी
यह चूनर ओढ़े
वह चोली पहने
भाग रही निरन्तर
इस औरत को उतना
आदमी नहीं भटकाता
जितना इसका औरतपन
इसे हराता है.