भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKCatGeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
तुम दुबली-पतली दीपक की लौ-सी सुन्दर | तुम दुबली-पतली दीपक की लौ-सी सुन्दर | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 10: | ||
मैं दुर्निवार | मैं दुर्निवार | ||
मैं तुम्हें समेटे हूँ सौ-सौ बाहों में, मेरी ज्योति प्रखर | मैं तुम्हें समेटे हूँ सौ-सौ बाहों में, मेरी ज्योति प्रखर | ||
+ | |||
आपुलक गात में मलय-वात | आपुलक गात में मलय-वात | ||
मैं चिर-मिलनातु जन्मजात | मैं चिर-मिलनातु जन्मजात | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 16: | ||
थर्-थर् कम्पित ज्यों स्वर्ण-पात | थर्-थर् कम्पित ज्यों स्वर्ण-पात | ||
कँपती छायावत्, रात, काँपते तम प्रकाश अलिंगन भर | कँपती छायावत्, रात, काँपते तम प्रकाश अलिंगन भर | ||
+ | |||
आँखे से ओझल ज्योति-पात्र | आँखे से ओझल ज्योति-पात्र | ||
तुम गलित स्वर्ण की क्षीण धार | तुम गलित स्वर्ण की क्षीण धार | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 22: | ||
साकार हुई छवि निराकार | साकार हुई छवि निराकार | ||
तुम स्वर्गंगा, मैं गंगाधर, उतरो, प्रियतर, सिर आँखों पर | तुम स्वर्गंगा, मैं गंगाधर, उतरो, प्रियतर, सिर आँखों पर | ||
+ | |||
नलकी में झलका अंगारक | नलकी में झलका अंगारक | ||
बूँदों में गुरू-उसना तारक | बूँदों में गुरू-उसना तारक |
12:13, 8 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुम दुबली-पतली दीपक की लौ-सी सुन्दर
मैं अंधकार
मैं दुर्निवार
मैं तुम्हें समेटे हूँ सौ-सौ बाहों में, मेरी ज्योति प्रखर
आपुलक गात में मलय-वात
मैं चिर-मिलनातु जन्मजात
तुम लज्जाधीर शरीर-प्राण
थर्-थर् कम्पित ज्यों स्वर्ण-पात
कँपती छायावत्, रात, काँपते तम प्रकाश अलिंगन भर
आँखे से ओझल ज्योति-पात्र
तुम गलित स्वर्ण की क्षीण धार
स्वर्गिक विभूति उतरीं भू पर
साकार हुई छवि निराकार
तुम स्वर्गंगा, मैं गंगाधर, उतरो, प्रियतर, सिर आँखों पर
नलकी में झलका अंगारक
बूँदों में गुरू-उसना तारक
शीतल शशि ज्वाला की लपटों से
वसन, दमकती द्युति चम्पक
तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा, तन स्वर्ण प्रभा कुसुमित अम्बर