भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अल्ताफ़ हुसैन हाली |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> धूम थी अपन…) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
धूम थी अपनी पारसाई की | धूम थी अपनी पारसाई की | ||
की भी और किससे आश्नाई की | की भी और किससे आश्नाई की | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 23: | ||
साअत आ पहुँची उस जुदाई की | साअत आ पहुँची उस जुदाई की | ||
− | ज़िंदा | + | ज़िंदा फिरने की हवस है ‘हाली’ |
इन्तहा है ये बेहयाई की | इन्तहा है ये बेहयाई की | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
20:29, 8 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
धूम थी अपनी पारसाई की
की भी और किससे आश्नाई की
क्यों बढ़ाते हो इख़्तलात बहुत
हमको ताक़त नहीं जुदाई की
मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे
तुमको आदत है ख़ुदनुमाई की
न मिला कोई ग़ारते-ईमाँ
रह गई शर्म पारसाई की
मौत की तरह जिससे डरते थे
साअत आ पहुँची उस जुदाई की
ज़िंदा फिरने की हवस है ‘हाली’
इन्तहा है ये बेहयाई की