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"यौवन का पागलपन / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।
 
हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

17:41, 12 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।
सपना है, जादू है, छल है ऐसा
पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,
मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा।
यह गुदगुदी, यही बीमारी,
मन हुलसावे, छीजे काया।
हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।
वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,
वह आया सपने में, मन में, उठकर,
वह आया साँसों में से रुक-रुककर।
हो न पुरानी, नई उठे फिर
कैसी कठिन मोहनी माया!
हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।

रचनाकाल: खण्डवा-१९४०