भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जीवन की कर्मभूमि / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
[[Category: मुक्तक]]
 
[[Category: मुक्तक]]
 
<poem>
 
<poem>
 +
1
 
जीवन की इस कर्मभूमि में,
 
जीवन की इस कर्मभूमि में,
 
ठीक नहीं है बैठे रहना।
 
ठीक नहीं है बैठे रहना।
 
बहुत ज़रूरी है जीवन में
 
बहुत ज़रूरी है जीवन में
 
सबकी सुनना, अपनी कहना।
 
सबकी सुनना, अपनी कहना।
 
+
2
 
सुख जो पाए हम मुस्काए,
 
सुख जो पाए हम मुस्काए,
 
आँसू आए उनको सहना।
 
आँसू आए उनको सहना।
 
रुककर पानी सड़ जाता है,
 
रुककर पानी सड़ जाता है,
 
नदी सरीखे निशदिन बहना
 
नदी सरीखे निशदिन बहना
 +
3
 +
सपना ही सही ,सजाए रखिए 
 +
ज़िन्दगी का भ्रम बनाए रखिए   
 +
हसरतें हज़ार हैं, ज़िन्दगी है 
 +
कुछ तो उम्मीद बचाए रखिए ।   
 +
 
</poem>
 
</poem>

22:01, 15 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण

1
जीवन की इस कर्मभूमि में,
ठीक नहीं है बैठे रहना।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना, अपनी कहना।
2
सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना
3
सपना ही सही ,सजाए रखिए
ज़िन्दगी का भ्रम बनाए रखिए
हसरतें हज़ार हैं, ज़िन्दगी है
कुछ तो उम्मीद बचाए रखिए ।