भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नारी / अभियान / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (नारी (अभियान) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर नारी / अभियान / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह= अभियान / महेन्द्र भटनागर
 
|संग्रह= अभियान / महेन्द्र भटनागर
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
चिर-वंचित, दीन, दुखी बंदिनि !
 
चिर-वंचित, दीन, दुखी बंदिनि !
 
तुम कूद पड़ीं समरांगण में,
 
तुम कूद पड़ीं समरांगण में,
पंक्ति 41: पंक्ति 41:
 
वर्ग-भेद के बंधन सारे
 
वर्ग-भेद के बंधन सारे
 
तुम आज मिटाने को आयीं !
 
तुम आज मिटाने को आयीं !
1949
+
 
 +
'''रचनाकाल: 1949
 +
</poem>

14:27, 29 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

चिर-वंचित, दीन, दुखी बंदिनि !
तुम कूद पड़ीं समरांगण में,
भर कर सौगन्ध जवानी की
उतरीं जग-व्यापी क्रन्दन में,
युग के तम में दृष्टि तुम्हारी
चमकी जलते अंगारों-सी,
काँपा विश्व, जगा नवयुग, हृत-
पीड़ित जन-जन के जीवन में !

अब तक केवल बाल बिखेरे
कीचड़ और धुएँ की संगिनि
बन, आँखों में आँसू भरकर
काटे घोर विपद के हैं दिन,
सदा उपेक्षित, ठोकर-स्पर्शित
पशु-सा समझा तुमको जग ने,
आज भभक कर सविता-सी तुम
निकली हो बनकर अभिशापिन !

बलिदानों की आहुति से तुम
भीषण हड़कम्प मचा दोगी,
संघर्ष तुम्हारा न रुकेगा
त्रिभुवन को आज हिला दोगी,
देना होगा मूल्य तुम्हारा
पिछले जीवन का ऋण भारी,
वरना यह महल नये युग का
मिट्टी में आज मिला दोगी !

समता का, आज़ादी का नव-
इतिहास बनाने को आयीं,
शोषण की रखी चिता पर तुम
तो आग लगाने को आयीं,
है साथी जग का नव-यौवन,
बदलो सब प्राचीन व्यवस्था,
वर्ग-भेद के बंधन सारे
तुम आज मिटाने को आयीं !

रचनाकाल: 1949