भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धूल भरी दोपहरी / नेमिचन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=एकान्त / नेमिचन्द्र जैन; तार सप्तक / अज्ञेय
 
|संग्रह=एकान्त / नेमिचन्द्र जैन; तार सप्तक / अज्ञेय
 
}}
 
}}
{{KKCatkavita}}
+
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
धूल भरी दोपहरी
 
धूल भरी दोपहरी

22:54, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

धूल भरी दोपहरी
धरती के कण-कण में गूँजी आकुल-सी स्वर-लहरी ।
सरल पल आते-जाते
करुण सिकता भर लाते
एक मूर्च्छना-सी प्राणों पर बेमाने बरसाते
अलसता होती गहरी ।
मधुर अनमनी उदासी
एक धूमिल रेखा-सी--
छाई है; बहता जाता है पवन अरुक संन्यासी
कौन देश की ठहरी ?
आ कर यों चल दिए कहाँ ओ जग के चंचल प्रहरी ?
धूल भरी दोपहरी ।

(1937 में बरुआसागर में रचित)