भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"है ज़िंदगी में मौत का सामाँ तेरे बग़ैर / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> है ज…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
  
 
तू पास हो तो नूर में ढलती है ज़िंदगी
 
तू पास हो तो नूर में ढलती है ज़िंदगी
होता नहीं नसीब दरख़्शाँ तेरे बग़ैर
+
होता नहीं नसीब दरख़्शाँ<ref>चमकना</ref> तेरे बग़ैर
  
क़िस्मत की तरह बादे-सबा भी उदास है
+
क़िस्मत की तरह बादे-सबा <ref>सुबह की हवा</ref>भी उदास है
 
सामाने-रंगे-बू है परीशाँ तेरे बग़ैर
 
सामाने-रंगे-बू है परीशाँ तेरे बग़ैर
  
मेरी शऊर मेरी हक़ीक़त मेरा वजूद
+
मेरा शऊर<ref>तरीका</ref> मेरी हक़ीक़त मेरा वजूद<ref> अस्तित्व</ref>
कुछ भी महीं है शान के शायाँ तेरे बग़ैर
+
कुछ भी नहीं है शान के शायाँ<ref>अनुसार</ref> तेरे बग़ैर
  
दौरे-ख़िज़ाँ है नाम तेरी ही जुदाई का
+
दौरे-ख़िज़ाँ<ref>पतझड़</ref> है नाम तेरी ही जुदाई का
 
खिलता नहीं है रंगे-बहाराँ तेरे बग़ैर
 
खिलता नहीं है रंगे-बहाराँ तेरे बग़ैर
  
नासाज़गार वक़्त की कैसी थी.......
+
तोड़ेगा कौन तल्ख़ी-ए-हयात<ref>परिस्थितियों की कड़वाहट</ref> की ये ज़िद
तक़दीर भी थी ख़ारे-बदामाँ तेरे बग़ैर
+
 
+
तोड़ेगा कौन तल्ख़ी-ए-हयात की ये ज़िद
+
 
रोकेगा कौन गर्दिशे-दौराँ तेरे बग़ैर
 
रोकेगा कौन गर्दिशे-दौराँ तेरे बग़ैर
  
पंक्ति 31: पंक्ति 28:
  
 
ऐ ‘चाँद’ आ भी जा कि मेरी ज़िंदगी की रात
 
ऐ ‘चाँद’ आ भी जा कि मेरी ज़िंदगी की रात
बनने लगी है इक शबे-ज़िन्दाँ तेरे बग़ैर
+
बनने लगी है इक शबे-ज़िन्दाँ<ref>निद्राविहीन रात्रि</ref> तेरे बग़ैर
 
</poem>
 
</poem>
 +
{{KKMeaning}}

07:17, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण


है ज़िंदगी में मौत का सामाँ तेरे बग़ैर
काँटों पे लोटती है मेरी जाँ तेरे बग़ैर

तू पास हो तो नूर में ढलती है ज़िंदगी
होता नहीं नसीब दरख़्शाँ<ref>चमकना</ref> तेरे बग़ैर

क़िस्मत की तरह बादे-सबा <ref>सुबह की हवा</ref>भी उदास है
सामाने-रंगे-बू है परीशाँ तेरे बग़ैर

मेरा शऊर<ref>तरीका</ref> मेरी हक़ीक़त मेरा वजूद<ref> अस्तित्व</ref>
कुछ भी नहीं है शान के शायाँ<ref>अनुसार</ref> तेरे बग़ैर

दौरे-ख़िज़ाँ<ref>पतझड़</ref> है नाम तेरी ही जुदाई का
खिलता नहीं है रंगे-बहाराँ तेरे बग़ैर

तोड़ेगा कौन तल्ख़ी-ए-हयात<ref>परिस्थितियों की कड़वाहट</ref> की ये ज़िद
रोकेगा कौन गर्दिशे-दौराँ तेरे बग़ैर

मेरा रफ़ीक<ref>मित्र</ref> मेरा मुक़द्दर<ref>भाग्य</ref> मेरा हबीब<ref>मित्र</ref>
मुद्दत से है यही ग़मे-दौराँ तेरे बग़ैर

ऐ ‘चाँद’ आ भी जा कि मेरी ज़िंदगी की रात
बनने लगी है इक शबे-ज़िन्दाँ<ref>निद्राविहीन रात्रि</ref> तेरे बग़ैर

शब्दार्थ
<references/>