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"दायरा / कुमार सौरभ" के अवतरणों में अंतर

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उठो, चढ़ाओ अदहन<ref>चावल पकाने के लिए उबलता हुआ जल</ref>
 
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गमकेगा गरमा भात
 
गमकेगा गरमा भात
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हौ कक्का
 
हौ कक्का
उधिए छिट्टा-छिट्टा धान
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दोसरो सीजन में  
 
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साध सकते हैं समसान
 
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करिया मेघ चमकने लगा है
 
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बुनकने लगा तो
 
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धान का खूबे नुकसान हो जाएगा
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ददा हौ
 
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दूगो नन्हकिरबा की पढ़ौनी
 
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जमा बारह पेट के लिए
 
जमा बारह पेट के लिए
हौड़ी भी चढ़नी है साल भर
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क्या-क्या होगा!!
 
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02:09, 11 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

काकी
मसुआई<ref>नमी की वज़ह से नरम हो जाने की स्थिति, यहाँ अन्यमनस्कता के सन्दर्भ में</ref> क्यों हो?
उठो, चढ़ाओ अदहन<ref>चावल पकाने के लिए उबलता हुआ जल</ref>
गमकेगा गरमा भात
पोठी<ref>एक प्रकार की छोटी मछली</ref> का झोर!<ref>सब्ज़ी का रस या झोर</ref>

हौ कक्का
उघिए छिट्टा-छिट्टा धान
दोसरो सीजन में
साध सकते हैं समसान
करिया मेघ चमकने लगा है
बुनकने लगा तो
खूबे नुकसान हो जाएगा

ददा हौ
खाली खैनी लटाके फाँकिएगा।
कि ठेको<ref>अन्न के भंडारन के लिए बाँस का बेलनाकार पात्र</ref> सरिआइएगा।
पसेरी-पसेरी धान भगिनमानो<ref>मामा के गाँव में सादर बसाए गए भांजे और उनकी संततियाँ</ref> में देना है
लो, दादी के अलगे ताल
हुक्का गुड़गुड़ाना छोड़के क्या बड़बड़ाने लगी है

हौ गोसाईं!
कैसे लगेगा पार
बेटा के कपार पर
दूगो नन्हकिरबी<ref>बेटी या लड़की</ref> ब्याहने को
दूगो नन्हकिरबा की पढ़ौनी
जमा बारह पेट के लिए
हाँड़ी भी चढ़नी है साल भर
मरुँआ, गहुँम और गरमा<ref>धान की एक अत्यन्त साधारण किस्म</ref> की
डेढ़-दो बीघा उपज से
क्या-क्या होगा!!

शब्दार्थ
<references/>