भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पिता / मुकेश जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (नया पृष्ठ: पिता पिता, वह पुरानी टूटी कुर्सी, बैंच और पंखा जो आवाज करता था जिन…)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
पिता
+
{{KKGlobal}}
 
+
{{KKRachna
पिता, वह पुरानी टूटी
+
|रचनाकार=मुकेश जैन
कुर्सी, बैंच और
+
}}
पंखा जो आवाज करता था जिन्हें
+
{{KKCatKavita}}
तुमने
+
{{KKAnthologyPita}}
मूल्यवान बनाये रखा था आज तक
+
पिता, वह पुरानी टूटी<br>
 +
कुर्सी, बैंच और<br>
 +
पंखा जो आवाज करता था जिन्हें<br>
 +
तुमने<br>
 +
मूल्यवान बनाये रखा था आज तक<br>
 
बे-जान हो गये हैं तुम्हारे बिना.  
 
बे-जान हो गये हैं तुम्हारे बिना.  
  
वे हस्तलिखित शास्त्र जो
+
वे हस्तलिखित शास्त्र जो<br>
तुमने पढ़े थे, बाट
+
तुमने पढ़े थे, बाट<br>
जोह रहे हैं, किसी की
+
जोह रहे हैं, किसी की<br>
जो उन्हें छुए / पढ़े
+
जो उन्हें छुए / पढ़े<br>
उनकी अनुभूति ग्रहण
+
उनकी अनुभूति ग्रहण<br>
 
करे.  
 
करे.  
  
पिता, अब एसी है, सौफे
+
पिता, अब एसी है, सौफे<br>
हैं
+
हैं<br>
कंप्युटर
+
कंप्युटर<br>
जिसमें हम
+
जिसमें हम<br>
 
फ़िल्म देखते हैं.  
 
फ़िल्म देखते हैं.  
  
रचनाकाल : २४/१०/२००९ (पिता की मृत्यु पर)
+
'''रचनाकाल''' : २४/१०/२००९ (पिता की मृत्यु पर)

01:10, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

पिता, वह पुरानी टूटी
कुर्सी, बैंच और
पंखा जो आवाज करता था जिन्हें
तुमने
मूल्यवान बनाये रखा था आज तक
बे-जान हो गये हैं तुम्हारे बिना.

वे हस्तलिखित शास्त्र जो
तुमने पढ़े थे, बाट
जोह रहे हैं, किसी की
जो उन्हें छुए / पढ़े
उनकी अनुभूति ग्रहण
करे.

पिता, अब एसी है, सौफे
हैं
कंप्युटर
जिसमें हम
फ़िल्म देखते हैं.

रचनाकाल : २४/१०/२००९ (पिता की मृत्यु पर)