भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"महाकाल था / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("महाकाल था / त्रिलोचन" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

19:32, 20 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

पलक मारने में जो उमड़ा भीड़ भड़क्का,
बाँध के शिखर से सरका, पट गया वह गढ़ा
जो नीचे था और अनवरत धक्कम धक्का
निगल गया सैकड़ों को । महाकाल था चढ़ा
अपने दल बल से, फँसने वाला नहीं कढ़ा ।
जिनकी साँस चल रही थी वे सब अचेत थे
और मृतों की हत्याओं के पाप से मढ़ा
था जैसे उनका चेतन स्तर, कटे खेत थे
मानो भीषण नाट्य के लिए, बचे प्रेत थे
आसपास जो घूम रहे थे, चौवाई है
जैसे नदी किनारे हिलते हुए बेंत थे,
कुछ ऎसे थे जैसे उन्हें टक्कबाई है ।

मृत्यु अकेली भी तो बेध बेध जाती है,
सामूहिक से छाती छलनी बन जाती है ।