भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यहाँ से भी चलें / ओम प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("यहाँ से भी चलें / ओम प्रभाकर" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

01:51, 4 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

चलें, अब तो यहाँ से भी चलें।

उठ गए
हिलते हुए रंगीन कपड़े
सूखते।
(अपाहिज हैं छत-मुँडेरे)
एक स्लेटी सशंकित आवाज़
आने लगी सहसा
दूर से।

चलें, अब तो पहाड़ी उस पार
बूढ़े सूर्य बनकर ढलें।

पेड़, मंदिर, पंछियों के रूप।
कौन जाने
कहाँ रखकर जा छिपी
वह सोनियातन
करामाती धूप।

चलें, अब तो बन्द कमरों में
सुलगती लकड़ियों-से जलें।