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"वसंत गीत / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर
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ओ मृगनैनी, ओ पिक बैनी, | ओ मृगनैनी, ओ पिक बैनी, |
18:52, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
ओ मृगनैनी, ओ पिक बैनी,
तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है!
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है!
मुख भी तेरा इतना गोरा,
बिना चाँद का है पूनम!
है दरस-परस इतना शीतल,
शरीर नहीं है शबनम!
अलकें-पलकें इतनी काली,
घनश्याम बदरिया झूठी है!
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी ह !
क्या होड़ करें चन्दा तेरी,
काली सूरत धब्बे वाली!
कहने को जग को भला-बुरा,
तू हँसती और लजाती!
मौसम सच्चा तू सच्ची है,
यह सकल बदरिया झूठी है!
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है!