भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कारे बदरा तू न जा / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: ओ पंछी प्यारे सांझ सखा रे <br /> बोले तू कौन सी बोली बता रे <br /> मैं तो पं…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
ओ पंछी प्यारे सांझ सखा रे <br />
+
{{KKGlobal}}
बोले तू कौन सी बोली बता रे <br />
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=शैलेन्द्र
 +
}}
 +
[[Category:गीत]]
 +
<poem>
 +
कारे बदरा तू न जा न जा बैरी तू बिदेस न जा
 +
घननन मेघ-मल्हार सुना रिमझिम रस बरसा जा
  
मैं तो पंछी पिंजरे की मैना<br />
+
सनन-सनन हाय पवन झकोरा बुझती आग जलाए
पँख मेरे बेकार <br />
+
मन की बात नयन में आए मुझसे कही न जाए
बीच हमारे सात रे सागर<br />
+
कारे बदरा तू न जा ...
कैसे चलूँ उस पार<br />
+
ओ पंछी प्यारे ...<br />
+
  
फागुन महीना फूली बगिया <br />
+
माथे का सिन्दूर रुलावे लट नागिन बन जाए
आम झरे अमराई<br />
+
लाख रचाऊँ उन बिन कजरा अँसुअन से धुल जाए
मैं खिड़की से चुप चुप देखूँ <br />
+
कारे बदरा तू न जा ...
ऋतु बसंत की आई<br />
+
 
ओ पंछी प्यारे ...
+
चौरस्ते पे जैसे मुसाफ़िर पथ पूछे घबराए
 +
कौन देस किस ओर जाऊँ मैं मन मेरा समझ न पाए
 +
कारे बदरा तू न जा ..
 +
</poem>

10:30, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

कारे बदरा तू न जा न जा बैरी तू बिदेस न जा
घननन मेघ-मल्हार सुना रिमझिम रस बरसा जा

सनन-सनन हाय पवन झकोरा बुझती आग जलाए
मन की बात नयन में आए मुझसे कही न जाए
कारे बदरा तू न जा ...

माथे का सिन्दूर रुलावे लट नागिन बन जाए
लाख रचाऊँ उन बिन कजरा अँसुअन से धुल जाए
कारे बदरा तू न जा ...

चौरस्ते पे जैसे मुसाफ़िर पथ पूछे घबराए
कौन देस किस ओर जाऊँ मैं मन मेरा समझ न पाए
कारे बदरा तू न जा ..