"समयातीत पूर्ण-3 / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर
Kumar suresh (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: == समयातीत पूर्ण ३ == <poem>हे माधव तुमने किया जीवन को पूर्ण स्वीका…) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=कुमार सुरेश | |
− | + | }} | |
− | <poem>हे माधव | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | हे माधव | ||
तुमने किया | तुमने किया | ||
जीवन को पूर्ण स्वीकार | जीवन को पूर्ण स्वीकार | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 16: | ||
मथुरा छोड़ी सारा यादव कुल था बेचैन | मथुरा छोड़ी सारा यादव कुल था बेचैन | ||
− | + | मुड-मुड देखते थे | |
युमना के कगारों को | युमना के कगारों को | ||
गाव की गलियो को | गाव की गलियो को | ||
पंक्ति 37: | पंक्ति 39: | ||
जीवन के प्रति कटु गंभीरता की नियति | जीवन के प्रति कटु गंभीरता की नियति | ||
विलोपन और विस्तृति के सिवा कुछ नहीं है | विलोपन और विस्तृति के सिवा कुछ नहीं है | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
21:46, 20 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
हे माधव
तुमने किया
जीवन को पूर्ण स्वीकार
न मोह न वितृष्णा
न प्रीत न घृणा
निर्बाध जीवन के साथ बहे तुम
बिना प्रतिरोध राजी हो कर
गत का नहीं शोक कोई
स्वागत किया हर आग़त का
मथुरा छोड़ी सारा यादव कुल था बेचैन
मुड-मुड देखते थे
युमना के कगारों को
गाव की गलियो को
विह्वल हो नथुनों में भरना चाहते थे
सुगंधा माटी की सोंध
पर तुम सदा वही देखते रहे जो सामने था
न सिंहावलोकन
न विहंगावलोकन
केवल अवलोकन
जब दुर्योधन ने सेना मांगी
तुमने दे दी अनासक्त भाव से
स्वयं अपनी ही सेना के
विरुद्ध सारथी बने रहे
निहत्थे
तुमने जीवन को
पवित्र माना
और एक खेल भी
जहाँ जीवन मात्र एक लीला बन जाये
हे लीलाधर
तुमने बताया
लीला एक सातत्य है और
जीवन के प्रति कटु गंभीरता की नियति
विलोपन और विस्तृति के सिवा कुछ नहीं है