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"नये युग के स्पार्ट्कस / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
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हवा में, पानी में | हवा में, पानी में | ||
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10:08, 18 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
कभी हुआ था एक मनु
जिसने बड़े जतन से
बनाई थी एक सलीब
और उस सलीब पर टाँग दिया था
उसने एक विचार
उस विचार से जन्मे फिर
असँख्य असँख्य मनु
और उन्होंने बना डालीं
असँख्य असँख्य सलीबें
जिन पर टाँगा जाता रहा हमें
लो
हम फिर से जी उठे हैं
अब हम हैं सर्वव्यापी
हवा में, पानी में
उजाले में, सुगन्ध में
किताबों में, विचारो में
साँसो की रवानी में
संघर्ष की कहानी में
हम हैं ज़िन्दगानी में
हम हैं
नए युग के स्पार्टकस
अब कैसे चढ़ा पाओगे
हम को किसी भी सूली पर
रचनाकाल : 2001