भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपनी ही / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
  
अपनी ही लाज में सिमटती
+
अपनी लाज में सिमटती
 
अपनी खींची  
 
अपनी खींची  
 
लकीरों में घिरती
 
लकीरों में घिरती
अपने ही पानी में बूँद-बूँद पिघलती बर्फ़
+
अपने ही पानी में
 +
बूँद-बूँद पिघलती बर्फ़
 
औरत
 
औरत
  
 
</poem>
 
</poem>

07:29, 17 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


अपनी लाज में सिमटती
अपनी खींची
लकीरों में घिरती
अपने ही पानी में
बूँद-बूँद पिघलती बर्फ़
औरत