भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क़तआत / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (क़तए / ग़ालिब का नाम बदलकर क़तआत कर दिया गया है) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=ग़ालिब}} | + | |रचनाकार=ग़ालिब |
+ | |संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब | ||
+ | }} | ||
{{KKCatKataa}} | {{KKCatKataa}} | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 11: | ||
ये निशानी रह गयी है अब बजाए-अन्दलीब | ये निशानी रह गयी है अब बजाए-अन्दलीब | ||
− | शब को ज़ौक़े-गुफ़्तगू से | + | शब को ज़ौक़े-गुफ़्तगू से तेरा दिल बेताब था |
− | शोख़ी-ए-वहशत से | + | शोख़ी-ए-वहशत से अफ़साना फ़ुसूने<ref>जादू</ref>-ख़्वाब था |
वां हजूमे-नग़्महाए-साज़े-इशरत था 'असद' | वां हजूमे-नग़्महाए-साज़े-इशरत था 'असद' | ||
− | नाख़ुने-ग़म यां सरे-तारे-नफ़स<ref>सांस</ref> मिज़राब<ref>सितार बजाने का छल्ला</ref> था | + | नाख़ुने-ग़म यां<ref>यहाँ</ref> सरे-तारे-नफ़स<ref>सांस</ref> मिज़राब<ref>सितार बजाने का छल्ला</ref> था |
− | दूद<ref> | + | दूद<ref>धुआँ</ref> को आज उसके मातम में सियहपोशी हुई |
− | वो दिले- | + | वो दिले-सोज़ाँ कि कल तक शम्ए-मातमख़ाना था |
− | शिकवा-ए- | + | शिकवा-ए-याराँ ग़ुबारे-दिल में पिन्हाँ कर दिया |
− | 'ग़ालिब' ऐसे गंज<ref>ख़जाना</ref> को | + | 'ग़ालिब' ऐसे गंज<ref>ख़जाना</ref> को शायाँ यही वीराना था |
</poem> | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
06:52, 27 मार्च 2010 के समय का अवतरण
एक अहले-दर्द ने सुनसान जो देखा क़फ़स<ref>पिंजरा</ref>
यों कहा आती नहीं अब क्यों सदाए-अ़न्दलीब<ref>बुलबुल</ref>
बाल-ओ-पर दो-चार दिखलाकर कहा सय्याद ने
ये निशानी रह गयी है अब बजाए-अन्दलीब
शब को ज़ौक़े-गुफ़्तगू से तेरा दिल बेताब था
शोख़ी-ए-वहशत से अफ़साना फ़ुसूने<ref>जादू</ref>-ख़्वाब था
वां हजूमे-नग़्महाए-साज़े-इशरत था 'असद'
नाख़ुने-ग़म यां<ref>यहाँ</ref> सरे-तारे-नफ़स<ref>सांस</ref> मिज़राब<ref>सितार बजाने का छल्ला</ref> था
दूद<ref>धुआँ</ref> को आज उसके मातम में सियहपोशी हुई
वो दिले-सोज़ाँ कि कल तक शम्ए-मातमख़ाना था
शिकवा-ए-याराँ ग़ुबारे-दिल में पिन्हाँ कर दिया
'ग़ालिब' ऐसे गंज<ref>ख़जाना</ref> को शायाँ यही वीराना था
शब्दार्थ
<references/>